भोपाल

Bhopal gas leak 1984: क्या जानबूझकर जहरीला गैस लीक की गयी?

Bhopal gas leak Anniversary 1984: एंडरसन को भगाने में में रहा बड़ा हाथ, लोगों ने लगाये थे आरोप

BHOPAL Gas Tragedy 1984: दो व तीन दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को हुई भोपाल गैस त्रासदी के दो वर्ष बाद चार दशक पूरे हो जाएंगे और पीड़ितों के घाव अब भी हरे हैं, मगर कई पीड़ित ऐसे भी हैं, जिन्होंने त्रासदी को झेला, अपनों को खोया, स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक रूप से तबाह हुए और हार नहीं मानी।

MP Bhopal gas leak anniversary : मौत से तो बच गए लेकिन कई बिमारियों ने इन पीड़ितों को घेर लिया. किसी की किडनी खराब हो गई तो किसी की आंखों की रोशनी नहीं रही. उस स्याह रात की कहानी इन पीड़ितों ने ईटीवी भारत से बयां की.

Bhopal gas leak: भोपाल। भोपाल का एक हिस्सा जब 38 बरस पुराने उस हादसे को तकरीबन भूलकर आगे बढ़ चुका है (38 years of bhopal gas tragedy). जब रवायत की तरह दो और तीन दिसम्बर की दरमियानी शाम और रात को कैंडल मार्च केवल इसलिए निकले जाते हैं कि भूलाए ना जाएं बेगुनाह भोपाल के हिस्से आए ज़ख्म. जब रस्मन प्रार्थनाओं की तरह गैस पीड़ितों की याद बची हो. तब वो चंद देहरे जो इस त्रासदी के आखिरी चश्मदीद भी हैं. त्रासदी खत्म नहीं हुई इस बात के आखिरी सबूत भी हैं. ईटीवी भारत पर दर्ज वो आवाज़ें जिन्होने पिछले 38 सालों में उस काली रात में निकले जहर को तिल तिल पिया है (victims told his pain on etv bharat).

Bhopal gas leak tragedy anniversary 1984: इस कारखाने ने मेरी रोजी मेरी मशीन छीन ली: अगर सब ठीक रहता तो इस उम्र में भी नवाब भाई सिलाई मशीन दौड़ाते ब्याह के इन दिनों में दूल्हों के लिए शेरवानी तैयार कर रहे होते. 38 बरस पहले भी शादी ब्याह के ही दिन थे. नवाब भाई के पास सांस लेने की फुर्सत नहीं थी. न्यू मार्केट में गाईड टेलर के नाम से दुकान थी किराए पर. अब उनकी ज़ुबानी सुनिए हुआ क्या था.

Bhopal gas leak why?जब गैस हादसा हुआ बुधवारा में वार्ड नंबर 23 में रहते था. गैस रिसी इसका मुझे पता तब चला जब आंखों से आंसू निकलने लगे. हम न्यू मार्केट की तरफ ही भागे. बीच में कमला पार्क में हौज भरा था. मैने सोचा कि पानी से आंख साफ कर लूं. तो एक जनाब ने कहा मियां ये मत कर लेना आंखे चली जाएंगी. आंख तो चली ही गई. दोनों आंखे जवाब दे रही हैं. दिखता भी नहीं और पानी भी आता रहता है. गैस कांड के बाद के पांच महीने तो बेकार ही गए, बीमार ही पड़े रहे. दुकान भी खाली करनी पड़ी. फिर 1989 में बीवी का इंतेकाल हो गया. 1991 में जवान बेटे की टीबी से मौत हो गई. छह बेटियां और एक छोटे बेटे को किस तरह से पाला है. जितनी जाने गईं सबके लिए यूनियन कार्बाइड जिममेदार है. उस रात को तो याद ही नहीं कर पाता. लाशों से ट्रक भरे थे और उनमें हम भी सवार. लोगों की तकलीफें देखी तो तय किया कि उनकी मदद करूंगा, अब जितना बनता है अस्पताल ले जाने में दवाईयां दिलवाने में मदद करता हूं.

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