रीवा

REWA SANJAY GANDHI HOSPITAL पुण्य स्मरण (राजबली सिंह का महर्षि दधीचि बन जाना)

रीवा के संजय गाँधी मेडिकल कॉलेज में देहदान पर मिशाल बने सतना के शिक्षक

रीवा (Rewa News ): खांटी ग्रामीण परिवेश में जन्मे, गांवो में ही पले बढ़े और मास्टरी का अधिकांश कार्यकाल गांवो के विद्यालयों में व्यतीत करने वाले राजबली सिंह परिहार जिन्हे हम सब दाऊ साहब कहते थे ।

MP REWA SANJAY GANDHI HOSPITAL : ने प्राण त्यागकर,देह दानकर ऐसी शिक्षा की अलख जगा दी जिससे उनके मृत शरीर से अध्ययन करके कितने काबिल चिकित्सक तैयार होंगे।देहदान कर उनका व्यक्तित्व ऋषि दधीचि और नानाजी देशमुख के आदम कद व्यक्तित्व के समक्ष ससम्मान खड़ा है ।

राजबली सिंह परिहार ने 84 वर्ष की आयु में शरीर को छोड़ा,(जन्म तिथि 1नवंबर सन उन्नीस सौ छत्तीस )और साकेत वासी बन गए। कहते हैं मिट्टी का शरीर मरणोपरांत मिट्टी में मिल जाता है।

REWA SANJAY GANDHI HOSPITAL HINDI : लेकिन 40 वर्ष तक शिक्षक के पद को पूर्णतः निष्ठा और ईमानदारी से निर्वहन करने वाले राजवली सिंह ने अपने 80 वें जन्मदिन पर शपथ लेकर एक ऐसा महादान का संकल्प लिया जिससे उनका मृत शरीर मिट्टी में नहीं मिलेगा वह मृत शरीर भी चिकित्सा महाविद्यालय छात्रों को बड़ा काम आएगा ।

मरणोपरांत देहदान करके राजबली सिंह अमर हो गये ।मरणोपरांत नेत्रदान महादान की स्वस्थ परंपरा भी निभा गए। 27दिसंबर को भोर के पहरे में प्राण त्यागकर गौ लोक वासी बन गए। वहीं 28 दिसंबर को पूर्व संकल्प और घोषणा नुसार परिजनों ने सहर्ष शरीर को श्याम शाह चिकित्सा महाविद्यालय को छात्रों के अध्ययनार्थ सौंप दिया ।

मूलतः नागोद जनपद के धौरहरा गांव के मूल निवासी राजबली सिंह परिहार ने सन 1998 में सेवानिवृत्ति प्राप्त की थी इसके पश्चात जयगुरुदेव के सत्संग में तल्लीन हो गए।जयगुरुदेव के सत्संग में ऐसे रमे ऐसे जमे की अपने साथ साथ उनके आठ पुत्र पुत्री समेत तकरीबन परिवार के 50सदस्य भी जय गुरुदेव की भक्ति सत्संग में रच गए बस गए।

उनके संयुक्त परिवार में लगभग 50 का भरा खुशहाल परिवार है, क्षत्रिय होकर भी किसी ने कभी मदिरा का सेवन नहीं किया कभी मांस को छुआ तक नहीं। राजबली सिंह परिहार को तुलसीदास जी की “कवितावली” और “विनय पत्रिका” मौखिक याद थी उन्होंने तकरीबन 70 से अधिक कविताएं लिखी जिन्हें उनके परिवार के सदस्यों ने “ब्रजराज” नाम से एक संकलित पुस्तक का आकार दिया है,

इसका अभी हाल ही में फरवरी 2021 में विमोचन किया गया था। राजबली सिंह परिहार की धर्मपत्नी बृजभान कुमारी सिंह पुत्र अजीत प्रताप सिंह, मानवेंद्र सिंह ,धर्मेंद्र सिंह मनुजेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह चंद्रजीत सिंह, सत्येंद्र सिंह और पुत्री माधवी सिंह हैं। बड़े पुत्र स्वयं शासकीय शिक्षक हैं और जीव विज्ञान के कुशल व्याख्याता एवं कवि हैं।

मेडिकल कॉलेज को पार्थिव शरीर देना ही देहदान है। मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को सीखने के लिए एक मृत शरीर (कैडेवर) की आवश्यकता होती है। बिना कैडेवर के मेडिकल की पढ़ाई पूरी नहीं हो सकती।

3 से 4 छात्रों के अध्‍ययन की,आवश्यकता एक कैडेवर पूरी कर सकता है, लेकिन इनके अभाव में मेडिकल कालेजों में 30-35 छात्रा एक ही कैडेवर पर अध्‍ययन करने को मजबूर हैं। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव उन छात्रों की योग्यता पर पड़ता है।


REWA HOSPITAL : इसके अतिरिक्त सर्जन, अनुसंधान व नई तकनीक के विकास के लिए भी कैडेवर पर निरंतर प्रयोग करते रहते हैं। इस तरह देहदान न केवल मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए वरन् नई तकनीक की खोज के लिए भी आवश्यक हो जाता है।
ये है प्रक्र‍िया:


VINDHYA HOSPITAL REWA NEWS : ,जैसे की कोई शव या देहदान करने के लिए परिजन मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं, तो उनका स्वागत किया जाता है। बाद में शव को वहां रखकर सांकेतिक अंतिम संस्कार की रस्म पूरी करवाई जाती है। शव पर फार्मेलीन व स्प्रीट का लेप लगाया जाता है। साथ ही फिनोल व ग्लिसरीन को नसों में प्रवाहित किया जाता है। फिर इसे 15 दिन बाहर रखा जाता है.

ताकि इसमें से पानी सूख सके। फिर इसे फार्मेलीन टैंक में रखा जाता है और अध्ययन की जरूरत के लिए निकाला जाता है। कई बार पतले शरीर के मृतक की बॉडी को ममीफाइड बनाया जाता है, ताकि उस सूखे शरीर से पढ़ाई की जा सके।मेडिकल कॉलेज में जो ममीफाइड बॉडी होती है वह करीब 50 ~50साल पुरानी तक होती हैं।

केवल कंकाल की पढ़ाई के लिए शव को बरियल ग्राउण्ड में गाडकर कुछ सालों बाद निकाला जाता है, ताकि शव कंकाल में बदल जाए। मेडिकल कॉलेज में मानव शरीर के विभिन्न अंगों का म्यूजियम भी होता है, इसमें विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है।

सेवानिवृत्त शिक्षक राजबली सिंह जिन्हें हम सब सम्मान से दाऊ साहब कहते थे ने मरणोपरांत देहदान कर ऋषि दधीचि और नानाजी देशमुख की मानव कल्याणार्थ पवित्र परंपरा का निर्वहन किया है।

सतना जिले में शायद यह पांचवा देह दान था सन 2010 में 28 फरवरी को प्रख्यात समाज शिल्पी भारत रत्न ,दीनदयाल शोध संस्थान के संस्थापक नानाजी देशमुख का पार्थिव शरीर अखिल भारतीय चिकित्सा संस्थान नई दिल्ली एम्स को बतौर देह दान मानव कल्याण हेतु समर्पित किया गया था ।

इसके अलावा राधे मोहन निगम ने मृत्यु के बाद 2012 में देह दान किया था 2013 में सूर्य प्रताप गौतम तथा 2018 में दयाराम कापड़ी ने देह दान किया और यह पांचवा देह दान दधीची समिति को संकल्प पत्र भरकर राजबली सिंह परिहार (दाऊसाहब) ने किया।


अंगदान और देहदान में आखिर अंतर क्या है?:
मृत्यु के पश्चात् अपने शरीर के ऐसे अंगों का दान, जो किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित किए जा सकें, ही अंगदान है।


आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि हृदय, लिवर, गुर्दे, पैनक्रियास, आंखें, फेफड़े आदि अंग किसी अन्य व्यक्ति में प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं।


आज हजारों रोगी अंगों के अभाव में मृत्यु की राह देख रहे हैं तथा उनके परिवारजन इस पीड़ा को अनुभव कर रहे हैं। यह अभाव हमारे समाज की संकीर्ण दृष्टि की वजह से है।
अंगदान मस्तिष्क- मृत्यु (Brain Stem Dealth) होने पर ही किया जा सकता है। इस प्रकार की मृत्यु में मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है परन्तु अन्य अंग कुछ समय तक काम करते रहते हैं।

डॉक्टर द्वारा प्रमाणित मृत्यु के पश्चात् ही उन अंगों को निकाला जाता है।


आंखें किसी भी प्रकार की मृत्यु के पश्चात् दान की जा सकती हैं। मृत्यु के बाद देहदान-अंगदान का संकल्प करके जरूरतमंद लोगों को दृष्टि, जीवन प्रदान कर व योग्य चिकित्सकों के निर्माण में सहयोग देकर आप महादानी बनें।क्या हम आप भी देहदान का संकल्प करके मानव कल्याण के लिए अपना जीवन सार्थक कर सकते हैं। जो फरता है वह झरता है, यह शाश्वत सत्य है लेकिन देह दान कर “बृजराज महर्षि दधीची बन चुके हैं।

“राजबली सिंह परिहार जैसे ऋषि तुल्य संत कभी मरते नहीं,वो अजर हैंअमर हैं,समाज को रास्ता दिखाते हैं। यह सुखद आश्चर्य ही होगा अगर इस ब्रजराज परिवार के हर सदस्य द्वारा देहदान की निकट भविष्य में घोषणा कर दी जाए। हम सबको देहदान की प्रेरणा लेनी चाहिए तभी मानव तन की सार्थकता है।

द्वारा: डॉक्टर रामानुज पाठक (शिक्षक ) सतना मध्यप्रदेश।

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