सतना

Nanaji Deshmukh Biography In Hindi : नानाजी देशमुख का जीवन परिचय

महाप्रयाण तिथि विशेष

वह अपने लिए नहीं, अपनों के लिए जिए, नाना होने के मायने बता गए नाना जी :डॉ.रामानुज पाठक

(वह अपने लिए नहीं, अपनों के लिए जिए, नाना होने के मायने बता गए नाना जी(Nanaji Deshmukh)

प्रख्यात समाज शिल्पी एवं ग्रामीण विकास की ,ग्राम स्वराज की रामराजी परिकल्पना का यथार्थ मॉडल व्यावहारिक धरातल पर प्रस्तुत करने वाले भारत रत्न नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh )की आज 12वीं पुण्यतिथि है।

आज पुण्यतिथि है उस नव दधीचि देहदानी की जिसे हमने अपनी आंखों से देखा, अपने कानों से सुना जिसकी सुदीर्घ राष्ट्र साधना के हम साक्षी हैं। जिसकी ऊष्मा का हमें स्पर्श मिला। यह पुण्यतिथि वैदिक युग में अस्थि दान करने वाले दधीची की नहीं है बल्कि उस नव दधीचि “नानाजी”(Nanaji Deshmukh ) की है जिन्होंने अपने जीवन का तिल तिल, क्षण क्षण राष्ट्रीय नवोन्मेष के लिए होम किया ,जगह-जगह सर्वांगीण विकास के दीप स्तंभ खड़े किए और अंत में अपनी तपोपूत देह को मेडिकल छात्रों के शोध के लिए एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली) को देहदान कर दी ।

अपने जीते जी 1997 में ही देहदान का संकल्प पत्र भरने वाले राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh ) ने “नाना “होने के मायने बताए। अपनी कथनी करनी से जहां मानव जीवन की सार्थकता “अपने लिए नहीं ,बल्कि अपनों के लिए जीने में है “।इसे चरितार्थ किया वहीं शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास का एक ऐसा यथार्थ मॉडल दिया जिसे सरकारें काश अपना लें तो रामराज की परिकल्पना साकार हो जाए।

इस देहदानी दधीचि की पहचान है “नानाजी देशमुख”(Nanaji Deshmukh ) सच कहें तो केवल “नाना “भले ही उनके माता-पिता ने उन्हें चंडिका दास नाम दिया हो पर हजारों हजार परिवार उन्हें स्नेही “नाना” के रूप में ही देखते जानते थे सचमुच के जगत के “नाना”।

ऐसे आजातशत्रु जिनका कोई भी शत्रु था ही नहीं ।कहने को जनसंघी ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दीक्षित बड़े कार्यकर्ता ,लेकिन कांग्रेसी ,समाजवादी, मार्क्सवादी सभी उनके मित्र ही नहीं बल्कि अनन्य मित्र थे।

भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट को अपने कर्म स्थली बनाने वाले नाना जी (Nanaji Deshmukh ) ने बनवासी, आदिवासी और ग्राम वासियों की पीड़ा देखी, सुनी और महसूस की। दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना कर अपने व्यापारी मित्रों, नेताओं से आर्थिक सहयोग लेकर अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्तियों के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। 11 अक्टूबर 1916 को महाराष्ट्र के परभनी जिले के हिंगोला तालुका के कड़ोली नामक छोटे से गांव में जन्मे नानाजी देशमुख यूं ही पूरे देश की श्रद्धा और प्रेरणा का केंद्र नहीं बने थे।

राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने सफल कर्तृत्व की विजय पताका फहराने वाले नाना जी सच्चे राष्ट्र ऋषि थे। 11 वर्ष की उम्र तक क, ख, ग, घ, भी ना पढ़ पाने वाले नानाजी देशमुख (Nanaji Deshmukh ) को ना जाने कितने दैनिक अखबारों ने उनके साकेत वासी होने पर संपादकीय लिखे। संघ के संस्कारों से दीक्षित नाना जी ने राजनीति भी की, मंत्री पद भी सुशोभित किया लेकिन मानवीय दर्द और करुणा से ओतप्रोत नाना जी ने राजनीति को तिलांजलि भी जल्दी ही दे दिया फिर कभी सक्रिय राजनीति में नहीं लौटे ।

उनकी राजनीति राष्ट्र कल्याण के लिए ही थी। सरस्वती विद्यालयों की स्थापना, स्वदेश समाचार पत्र की स्थापना और ग्राम जीवन की स्थिति सुधारने के लिए ग्राम सेवा के लिए अनेकानेक प्रकल्प की स्थापना। नाना जी एक ऐसे समाज प्रेरक थे जिन्होंने देश के असंख्य दीन दुखियों के चेहरों पर मुस्कुराहट बिखेरने में सफलता पाई थी।

भारतीय ग्रामीण जीवन की समस्याओं चुनौतियों और उनकी अंतरनिहित संभावनाओं की बारीक समझ के साथ ही नाना जी के हृदय में ग्रामीण बंधुओं के प्रति गहरी संवेदना थी, इस कारण ही उनकी वास्तविक स्थिति को समझने का अवसर नाना जी को मिला।

शिक्षा एवं ज्ञान के प्रति नाना जी का यह गहरा लगाव ही था जिससे प्रेरित होकर उन्होंने 1950 में गोरखपुर में देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर स्थापित किया जिसकी आज लाखों शाखाएं पूरे देश में विस्तारित हैं ,जो संस्कार युक्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं। विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में 2 माह तक सीधी भागीदारी करने वाले नाना जी की गरीबों, असहाय, वंचितों के लिए तड़प इतनी ज्यादा थी

कि चित्रकूट जैसे अति पिछड़े दस्यु प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों के समग्र विकास का लक्ष्य लेकर दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से ग्राम विकास को अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।1969 में दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना भी नानाजी देशमुख ने ही की थी.

चित्रकूट में ही देश के प्रथम ग्रामीण विश्वविद्यालय महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना कर उसके प्रथम कुलपति का दायित्व भी उन्होंने निभाया था। दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से अपने सहयोगियों संग नानाजी ने चित्रकूट अंचल के 500 पिछड़े ग्रामों को पूर्ण विकसित एवं सशक्त बनाने का सफल प्रयोग किया ।

दीनदयाल शोध संस्थान भारतीय परिप्रेक्ष्य में समग्र विकास का सफल मॉडल बनाने वाली एक अनोखी संस्था है जो आज भी नानाजी के ना रहने के बाद भी 12 वर्षों से लगातार ग्रामीण विकास एवं नानाजी के सपनों को साकार करने का कार्य कर रही है। विकास कार्य गतिविधियों के अलावा नानाजी और उनकी टीम ने गांवों को आत्मनिर्भर बनाने में भी आशातीत सफलता पाई थी। ग्रामीण अंचलों को पूर्ण रूप से स्वावलंबी बनाने की नानाजी ने अनुपम कार्य प्रणाली विकसित की थी ।

नानाजी ने 100 ग्रामों के आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित किया था। उन्होंने सामाजिक आर्थिक समस्याओं का सफल निदान ढूंढने में सफलता तो पाई ही थी ग्रामीण जीवन की एक जटिल समस्या मुकदमे बाजी से ग्रामीणों को पूर्णतह मुक्ति

के साथ विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण के साथ-साथ जन-जन के जीवन में भी मूल्य आधारित बदलाव लाने में नानाजी ने बड़ी सफलता पाई थी सामाजिक विकास के नानाजी ने कई प्रयोग किए जिनमें में पूर्णतह खरे उतरे थे ,

उन्होंने कभी किसी बात से समझौता नहीं किया था। भारत के भविष्य के निर्माता युवा शक्ति के प्रति उनकी गहरी आस्था थी उनका संपूर्ण जीवन और कार्य इस बात की प्रत्यक्ष मिसाल है की परंपरा और विज्ञान के एकीकृत प्रयासों से मानव के सुख और समृद्धि का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है ।

यह नानाजी के बूते की ही बात थी कि उन्होंने ग्राम विकास के कार्यों में दलों और मत मतांतरो की सीमाएं लांघ कर सभी दलों व विचार धाराओं के लोगों को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया था।

25 वर्षों तक राजनीति में सक्रिय ही नहीं अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नानाजी (Nanaji Deshmukh ) 1975 में आपातकाल की काली छाया में अधिनायकवाद के विरुद्ध आवाज उठाने वाले सभी जन नेताओं के साथ जेल में थे नानाजी को जेल में घनीभूत चिंतन के साथ ही आत्मा लोचन का अवसर मिला। “राजनीति का बहिष्कार नहीं परिष्कार चाहिए”।

इस उद्देश्य से लगभग तीन दशकों तक नवनिर्मित भारतीय जनसंघ से लेकर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में गठित जनता पार्टी में दीर्घकाल तक कार्य करने के बाद भी अभीष्ट सफलता नहीं मिली। राजनीति दिनोंदिन प्रदूषित होती गई विकास का कार्य अवरुद्ध हो गया ,आम जनता तबाही के कगार पर पहुंच गई, स्वतंत्रता संग्राम में आत्माहुती देने वाले असंख्य देश भक्तों, एवं जन नायकों ने क्या स्वाधीन भारत का यही सपना संजोया था?

राष्ट्र जीवन के आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक, शैक्षणिक आज किसी भी क्षेत्र में क्या हम राष्ट्रीय आदर्शों के अनुरूप कोई भी मौलिक रचना खड़ी कर पाए ?आज भी देश की आधी आबादी दुख दैन्य का जीवन बिताने के लिए मजबूर क्यों है? ऐसे अनेक प्रश्नों का उत्तर खोजने में नानाजी ने जेल जीवन को सार्थक बना दिया ।

अंतरात्मा की आवाज सुनी लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्तिगत पारिवारिक एवं सामूहिक आचरण के क्षेत्र में लंबे एवं बहुविध प्रयोगों की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य है।प्रत्यक्ष आचरण की प्रयोगशाला की भट्टी में तप कर ही नवनिर्माण का सांचा तैयार हुआ करता है ।राष्ट्र जीवन की दुर्दशा देखकर अशांत मन को आशा की नई किरण ने झकझोरा ।

बस! अब शेष जीवन इसी कार्य में लगाना होगा। जेल से निकलने के बाद नानाजी ने पूरी ताकत के साथ स्वयं को नव निर्माण के प्रयोग में समर्पित कर दिया उत्तर प्रदेश का गोंडा जिला गुजरात महाराष्ट्र के कई पिछड़े जिले मध्य प्रदेश का चित्रकूट सतना जिला इन सभी अंचलों में ग्राम विकास के लिए अनेकानेक प्रकल्प चलाए। इमानदारी पूर्वक प्रयोग ,प्रयास किए।

आज उनके खड़े “टाटा आरोग्यधाम” “उद्यमिता विद्यापीठ” “कृषि अनुसंधान केंद्र ” “गौशाला” “ग्राम शिल्पी दंपत्ति “को देख कर मन बरबस ही नानाजी को नमन करता है ।नानाजी ही थे जिन्होंने ग्राम विकास के लिए “हर हाथ को काम, हर खेत को पानी” देने का भागीरथी अभियान अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक चलाया ,इसे आज भी दीनदयाल शोध संस्थान के संस्कारित कर्मठ कार्यकर्ता आगे बढ़ा रहे हैं ।

सन 2003 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने 30 मार्च को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक रैली में खुले मन से कहा था कि” नाना जी से सीखें ,कैसे बदला जा सकता है देश?”1999 से 2005 तक मनोनीत राज्यसभा सदस्य रहे नानाजी ने सांसद निधि से प्राप्त राशि का पाई पाई मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट के विकास में खर्च की। सिया राम कुटीर से नित्य नए चित्रकूट के विकास के आयाम निकले “मानवता के मर्म की अनुभूति” का प्रवेश द्वार “राम दर्शन”का निर्माण कराने वाले नानाजी ने विदेशों में “भगवान राम “की सर्व व्यापकता का सचित्र दर्शन कराया.

आज उन्हीं द्वारा स्थापित महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत प्रतिष्ठित हो चुका है आज 27 फरवरी इस महान पुरुष के महाप्रयाण की 12वीं तिथि है।यद्यपि सरकारों ने नानाजी के कार्य को बखूबी मान्यता दी उन्हें “पद्म विभूषण”तथा मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” दिया गया था।

जबलपुर स्थित पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय का नाम करण भी नानाजी के नाम पर किया गया है ,उनके नाम पर ग्रामीण विकास एवं समाज सेवा के क्षेत्रों में राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जा रहे हैं ,लेकिन क्या इतना काफी है? इस लेखक ने सन् 2001 से 2002 में नानाजी का स्नेह वात्सल्य प्राप्त किया है,उन्होंने खुद चर्चा के दौरान कहा था कि “आज की राजनीति बहुत निकृष्ट है,उनके मन में राजनेताओं के लिए वितृष्णा देखी है,

ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों के लिए, बेरोजगारी के लिए तड़प देखी है राजनेताओं के दोगले चरित्र विश्वासघात की कहानियां उनकी जुबान से सुनी है देखा है महसूस की है। उनकी जन्मतिथि और पुण्य तिथि पर आयोजन होते रहें यह अच्छी बात है लेकिन क्या कोई राजनेता या मंत्री अपना “चौथापन”(बुढ़ापा,60वर्ष के बाद की अवस्था) समाज सेवा के लिए देने का साहस दिखा सकता है ,सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर सकता है ,

किसी अति पिछड़े क्षेत्र को अपने कर्म स्थली बनाकर उसके विकास के लिए दिन रात मेहनत कर सकता है ,इमानदारी से गांव गांव गौशालाएं संचालित करा सकता है, हर खेत को पानी दिला सकता है ,सांसद विधायक निधि में कमीशन छोड़ कर प्राप्त निधि की पाई पाई का उपयोग विकास के लिए कर सकता है, और मरणोपरांत देहदान का संकल्प का साहस दिखा सकता है,शायद नहीं ।

देश के सामाजिक, राजनैतिक जीवन में वह आदर्श पुरुष व निष्काम कर्मयोगी थे। उनकी गणना उस वर्ग में की जाएगी जिसमें “राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य विनोबा भावे” जैसे संत राजनीतिज्ञ हुए हैं। पूरे भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में नाना जी के बाद एक भी “सर्वमान्य व्यक्तित्व “नहीं बचा। मानवीय संवेदनाओं से सरोबार उनके जीवन का प्रत्येक क्षण “मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं और अपने वे हैं जो सदियों से उपेक्षित एवं पीड़ित हैं”। Rewa Collector Order : रीवा कलेक्टर ने बैन किया ये स्कूली वाहन

12 वीं पुण्यतिथि पर इस महामानव भारतरत्न नानाजी को विनम्र श्रद्धांजलि।”तुम जीवित थे तो सुनने को जी करता था, तुम चले गए तो गुनने को जी करता है। तुम सिमटे थे तो सहमी सहमी सांसें थी, तुम बिखर गए तो चुनने को जी करता है।

“द्वारा: डॉक्टर रामानुज पाठक सतना मध्यप्रदेश संपर्क,7974246591/7697179890.

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