KATNI NEWS : एक वक्त था, जब लोगों के कपड़े के मामले में पहली पसंद हाथकरघा निर्मित वस्त्र होते थे। लेकिन फिर कपड़ा मिल का दौर आया और हैंडलूम की जगह पावरलूम ने ले ली। वक्त के साथ हाथकरघा उत्पाद की मांग कम होती गई। मगर, अब इस क्षेत्र में मध्यप्रदेश दीनदयाल अंत्योदय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के स्व-सहायता समूह की दीदियों की उद्यमिता की वजह से आशा की न केवल किरण नजर आने लगी है, बल्कि यह ग्रामोद्योग भी अब मांग के आकाश पर छाने लगा है।
प्रयासों के ताने-बाने से एक बार फिर हाथकरघा वस्त्रों की खूबसूरत दुनिया सुरक्षित महसूस कर रही है। यह प्रयास कोई एक व्यक्ति, संस्था या एक पद्धति से नहीं, बल्कि साझा रूप से हो रहा है और इस कार्य को कटनी जिले के स्व-सहायता समूह बड़ी शिद्दत से आगे बढ़ा रहे हैं। पारंपरिक ढंग से तैयार होने वाले हाथकरघा उत्पाद पर नई डिजाइन की खूबसूरती की झलक दिख रही है। बड़ी नफासत से सोलर चरखा से रूई की पोनी से धागा और फिर बीना में बुने हुए कपड़ों की डिजाइनर ड्रेसेसों का इन दिनो काफी चलन बढ़ रहा है।
यहां बात हो रही है 11 सदस्यीय सतनाम महिला स्वसहायता समूह इमलिया की, जिसकी दीदियों ने सरकारी मदद और तकनीकी मार्गदर्शन के बूते उद्यमिता की नायाब नजीर पेश कर दी। स्थिति यह है कि आज इस समूह की हर महिला सदस्य 10 से 15 हजार रूपये प्रतिमाह की आमदनी अर्जित कर रहीं है। सतनाम स्वसहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती अन्नू साहू कहती है कि समूह से जुड़ने के पहले उनकी माली हालत खराब थी। परिवार के भरण पोषण मे भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। लेकिन शासन से स्वीकृत होने के
बाद बैंकों के द्वारा दो चरणों मे मिले 90 हजार रूपये की राशि से धागा निर्माण हेतु उन्नत किस्म की मशीन क्रय की गई और इसके अलावा कुछ अन्य उन्नत किस्म के यंत्रों जैसे सोलर चालित चरखा मशीन आदि क्रय की गई। यह चरखा सोलर बिजली व मेनुअल हस्तचालित तीनों ही तरीके से चलाया जा सकता है। समूह के पास पांच चरखा मशीन उपलब्ध है जिनसे धागा बनाने के बाद 230 रूपये प्रति किलो की दर से समूह से धागे का क्रय किया जाता है। सचिव श्रीमती रीता कोरी ने बताया कि समूह के लिए कच्ची रूई अहमदाबाद से मंगाने के बाद समूह की महिलाएं इसी चरखे से रूई की पोनी से धागा बनातीं है।