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REWA NEWS : बलिदान की अनूठी मिसाल ईद-उल-अजहा 17 जून को

REWA NEWS : हज़रत इब्राहीम अलै0 के बेटे हज़रत इस्माईल अलै0 की याद में मनाया जाने वाला कुरबानी का प्रतीक पर्व ईद-उल अजहा 17 जून को शालीनता पूर्वक मनाने के लिये उम्मत-ए-मोहम्मदिया कमेटी रीवा की आवश्यक बैठक सम्पन्न हुई, बैठक की अध्यक्षता संस्थापक मो0 शुऐब खान ने की एवं अध्यक्ष मो0 मकदूम खान विशेष रूप से उपस्थिति रहें।
उम्मत-ए-मोहम्मदिया कमेटी रीवा के संस्थापक मोहसिन खान एवं प्रवक्ता अजहरूद्दीन अज्जू ने प्रेस को जारी संयुक्त विज्ञप्ति में बताया है कि पूरे हिन्दोस्तॉ के साथ-साथ विंध्य क्षेत्र में भी कुर्बानी का प्रतीक पर्व ईद-उल-अजहा 17 जून को परम्परागत ढंग से मनाया जायेगा। इस्लाम में एक साल में दो तरह की ईद मनाई जाती है, एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी बकरीद। एक ईद समाज में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है तो वहीं दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिये जागरूक रहने का सबक सिखाती है। बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है।

 

 

ईद-उल-अजहा को सुन्नत-ए-इब्राहीमी भी कहते है, इस्लाम के मुताबिक अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम की परीक्षा लेने के उद्देश्य से अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया। हज़रत इब्राहीम को लगा कि उन्हे बुढ़ापे का सबसे प्रिय चीज तो उनका बेटा है, इसलिये उन्होने ने अपने बेटे की ही कुर्बानी देना स्वीकार किया। हज़रत इब्राहीम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाये आड़े आ सकती है, इसलिये उन्होने अपनी आंखो पर पट्टी बांध ली। अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रत जिब्राईल अलै0 पलक झपकते ही उस स्थान पर पंहुच कर दुम्बा को लेटा दिया।

 

 

जब उन्होने आखों से पट्टी हटाई तो उन्होने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा और वहां पर कटा हुआ दुम्बा पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है और रहती दुनिया तक उम्मत-ए-मुस्लिमा के लिये कुर्बानी वाजिब करार दे दी गई। ईद-उल अजहा हमे कुर्बानी का पैगाम देता है, यह त्योंहार सिर्फ ज़ानवर की कुर्बानी देना नही सिखाता बल्कि धन दौलत और हर वह चीज जो हमे दुनियावी लालच मंे गिरफ्तार करती है, साथ ही हमें बुरे काम करने के लिये बढ़ावा देेती है, उसका अल्लाह की राह में त्याग करना सिखाता है। इस प्रकार इस्लाम में बकरीद का त्योंहार मनाया जाता है, हर त्योंहार प्रेम और शान्ति का प्रतीक होते है।

 

 

कुर्बानी के लिये बकरे की उम्र 1 साल पूरी होनी चाहिये, जानवर तन्दरूस्त होना चाहिये व बीमार नही होना चाहिये एवं उसके सारे अंग सही सलामत होने चाहिये। ईदु-उल अजहा के दिन दो रकात नमाज वाजिब अदा करने के बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू होता है जो मुसलसल तीन दिन तक चलता है। इस त्यौहार के मद्देनज़र शासन एवं प्रशासन से विशेष साफ-सफाई, बिजली, तीनों टाइम पानी एवं नालियों मे कीटनाशक दवॉइयों का छिड़काव करने की मांग कमेटी के संस्थापक मो0 शुऐब खान, मोहसिन खान, मकदूम खान, मो0 साबिर खान, माजिद खान, शौकत उमर निज़ामी, लईक खान, गुलमोहम्मद अंसारी, मौलाना गुलाम मुस्तुफा अशरफ, मोहम्मद हासिम, मुस्तहाक खान, इसरार अहमद खान, माजिद खान, जहरूद्दीन अज्जू, हसीब खान राज, वाइज खान अशरफी, वाशिद खान, वाजिद खान, सुहैल खान अशरफी, सईद खान राशिद खान, मो0 शाहिद खान, मुशीबुद्दीन खान, इकबाल अहमद खान, अय्यूब खान आदि ने की है।

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